सुंदरलाल बहुगुणा की 98वीं जयंती पर विशेष: चंद्र सिंह की प्रेरक यात्रा

देहरादून, 9 जनवरी: भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा की 98वीं जयंती के अवसर पर, आज दून लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर में आयोजित एक समारोह में चंद्र सिंह ने अपनी जीवन यात्रा को साझा किया। यह यात्रा उनके गुरु बहुगुणा जी के मार्गदर्शन और शिक्षा के माध्यम से सामाजिक और व्यक्तिगत बदलाव की प्रेरक कहानी है।

 

20वीं सदी के मध्य में, उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लॉक के भंकोली गांव में सुंदरलाल बहुगुणा ने न केवल पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर किया, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय और शिक्षा के बीच गहरे संबंधों को भी पहचाना। बहुगुणा जी ने स्थानीय समुदायों को पर्यावरणीय संकट से बचने के साथ-साथ शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण का संदेश दिया।

 

चंद्र सिंह, जो एक अनुसूचित जाति के गरीब लड़के के रूप में अपने परिवार की आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे थे, उनके जीवन में बहुगुणा जी का प्रभाव निर्णायक साबित हुआ। चंद्र जब गांव के ऊपरी हिस्से की छानियों में जानवरों की देखभाल करते थे, तब बहुगुणा ने उनकी शैक्षिक क्षमता को पहचाना और उन्हें शिक्षा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

 

बहुगुणा जी के प्रयासों से टिहरी में ठक्कर बाबा निवास की स्थापना हुई, जो वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा और आश्रय प्रदान करता था। इस छात्रावास से चंद्र सिंह जैसे बच्चों को न केवल शिक्षा प्राप्त हुई, बल्कि उनके जीवन में एक नया बदलाव आया। बहुगुणा जी के मार्गदर्शन में चंद्र सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और बाद में उत्तरकाशी से प्रदेश सिविल सेवा (पीसीएस) और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में सफलता हासिल की।

 

चंद्र सिंह आज भी अपने कार्यों के लिए आदर्श अधिकारी माने जाते हैं। उन्होंने अपने गुरु बहुगुणा जी को याद करते हुए कहा कि, “उनकी शिक्षाएँ और उनके द्वारा दिए गए अवसरों ने मेरी ज़िंदगी को दिशा दी और मुझे अपने समाज के लिए कुछ बड़ा करने की प्रेरणा दी।”

 

यह कहानी सिर्फ चंद्र सिंह की नहीं, बल्कि यह हमें बताती है कि शिक्षा और करुणा में निहित शक्ति किसी भी व्यक्ति के जीवन को बदल सकती है। बहुगुणा जी की विरासत आज भी जीवित है, और उनकी विचारधारा से प्रेरित होकर हजारों लोग समाज में बदलाव लाने की दिशा में काम

कर रहे हैं।

 

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