रुद्रप्रयाग: सफाई कर्मी बना डॉक्टर, मरीजों की जान पर बन आई – बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलती सच्चाई

“रुद्रप्रयाग के अस्पताल में डॉक्टर नदारद, सफाई कर्मी बना ‘चिकित्सक’ – ग्रामीणों में फूटा आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी”

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है, लेकिन रुद्रप्रयाग जिले से जो मामला सामने आया है, उसने सरकारी दावों की हकीकत को एक बार फिर बेनकाब कर दिया है। विकासखंड जखोली के भरदार पट्टी स्थित खरगेड़ गांव के आयुष्मान आरोग्य मंदिर (आयुर्वेदिक चिकित्सालय) में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की लापरवाही इस हद तक पहुंच गई है कि अब अस्पताल का सफाई कर्मचारी मरीजों का इलाज कर रहा है।

सफाई कर्मचारी कर रहा इलाज, डॉक्टर साहब सिर्फ ‘मेहमान’

जानकारी के अनुसार, अस्पताल में डॉक्टर और फार्मासिस्ट समेत कुल 5 कर्मचारियों की तैनाती है। लेकिन नियमित रूप से अस्पताल में केवल सफाई कर्मचारी ही नजर आता है। वही मरीजों का बीपी चेक करता है, दवाइयां देता है और कभी-कभी प्राथमिक सलाह भी दे देता है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि अस्पताल के बाकी कर्मचारियों ने पास के शहर श्रीनगर में किराए के कमरे ले रखे हैं। ये सभी कर्मचारी रोज़ सुबह वहां से खरगेड़ पहुंचते हैं, लेकिन अस्पताल में उनकी उपस्थिति महज़ 2 घंटे तक सीमित रहती है।

सरकारी टाइमटेबल की उड़ रही धज्जियां

मार्च से अक्टूबर तक इस अस्पताल का निर्धारित समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक का है, जबकि नवंबर से फरवरी तक यह 9 बजे से 3 बजे तक खुलता है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि कर्मचारी सुबह आराम से 11 बजे पहुंचते हैं और 1 बजे श्रीनगर लौटने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

मरीज सुबह 8 बजे से ही अस्पताल पहुंच जाते हैं और फार्मासिस्ट या डॉक्टर का इंतजार करते रहते हैं। कई बार तो अस्पताल पूरी तरह बंद मिलता है, जबकि उस दिन कोई सरकारी अवकाश भी नहीं होता।

ग्रामीणों में गुस्सा, विभाग को दी चेतावनी

ग्रामीणों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ने उन्हें खुद के स्वास्थ्य के लिए दूसरों पर निर्भर बना दिया है। लोग कई किलोमीटर दूर से इस उम्मीद में आते हैं कि शायद इलाज मिल जाए, लेकिन उन्हें अक्सर अस्पताल बंद या खाली ही मिलता है।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि उन्होंने इस समस्या को कई बार विभाग के संज्ञान में लाने की कोशिश की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अब उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि आयुर्वेदिक विभाग ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो गांववाले आंदोलन करेंगे और अस्पताल के बाहर धरना देंगे।

कामचोरी पर सवाल, जिम्मेदारी से बच रहे अधिकारी

ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग ने अस्पताल में पर्याप्त स्टाफ की तैनाती तो कर दी, लेकिन उनकी निगरानी और जवाबदेही तय नहीं की। इससे स्टाफ ने कामचोरी को अपना हथियार बना लिया है।

कर्मचारी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और सफाई कर्मचारी, जो न तो प्रशिक्षित है और न ही अधिकृत, वो अब इस अस्पताल की रीढ़ बन गया है। यह स्थिति मरीजों की सुरक्षा और स्वास्थ्य अधिकारों का खुला उल्लंघन है।


सरकार और विभाग के लिए चेतावनी की घंटी

यह मामला सिर्फ एक गांव का नहीं, बल्कि पूरे पहाड़ी राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बयान करता है। जब सफाई कर्मचारी मरीजों की देखभाल करने लगे और डॉक्टर सिर्फ दिखावे के लिए आएं, तो समझा जा सकता है कि हालात कितने चिंताजनक हैं।

सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि ऐसे मामलों में त्वरित संज्ञान लेते हुए न केवल जवाबदेही तय करें, बल्कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई भी करें। ग्रामीणों को उनके स्वास्थ्य अधिकारों से वंचित रखना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

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