नैनीताल (हल्द्वानी): उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। नैनीताल जिले के दूरस्थ ओखलकांडा ब्लॉक स्थित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भद्रकोट में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां कक्षा 10वीं में पढ़ने वाला इकलौता छात्र उत्तराखंड बोर्ड की परीक्षा में फेल हो गया, जबकि स्कूल में उसे पढ़ाने के लिए कुल 7 शिक्षक नियुक्त हैं।
स्कूल में छात्र 7, शिक्षक भी 7 – फिर क्यों नहीं हो रही पढ़ाई?
स्कूल में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे सभी विषयों के शिक्षक मौजूद हैं। इसके अलावा एक क्लर्क और एक भोजनमाता भी है। इसके बावजूद, बोर्ड परीक्षा में एकमात्र छात्र के फेल हो जाने ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति को उजागर कर दिया है।
छात्र विशेष आवश्यकता वाला, फिर भी नहीं मिली पर्याप्त शैक्षणिक मदद
मुख्य शिक्षा अधिकारी गोविंद राम जायसवाल ने कहा कि जब टीम ने स्कूल का दौरा किया और छात्र का मूल्यांकन किया, तो पता चला कि वह एक विशेष आवश्यकता वाला बच्चा है। उसके शारीरिक और मानसिक विकास में देरी है, जिसकी पुष्टि उसके पिता ने भी की है। सवाल यह है कि क्या शिक्षक इतने वर्षों तक इस स्थिति को समझ नहीं पाए या उसे उपेक्षित किया गया?
अब स्कूल में 12 छात्र, सुधार की कोशिशें जारी
फिलहाल स्कूल में कक्षा 6 से 10 तक कुल 12 छात्र पढ़ रहे हैं, जिनमें 10वीं में अब 3 छात्र हैं (जिसमें वह फेल छात्र भी शामिल है)। अधिकारियों ने शिक्षकों को निर्देश दिया है कि वे आस-पास के गांवों से अधिक से अधिक बच्चों को स्कूल में नामांकित करें, ताकि कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।
मूल समस्या: संसाधन हैं, शिक्षक भी हैं, तो परिणाम क्यों नहीं?
यह घटना केवल एक छात्र की विफलता नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के ग्रामीण शिक्षा तंत्र की विफलता को दर्शाती है। जब शिक्षकों की संख्या पर्याप्त हो, संसाधन मौजूद हों और फिर भी छात्र असफल हो, तो यह सोचने पर मजबूर करता है कि गड़बड़ी आखिर कहां है – क्या यह शिक्षण पद्धति में कमी है, जिम्मेदारी की भावना की कमी या प्रशासनिक उदासीनता?