उत्तराखंड के गांवों में सादगी का संकल्प – शादी में तीन गहने और शराब पर रोक

देहरादून। उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल के गांव अब फिर से अपनी पुरानी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटते नजर आ रहे हैं। चकाचौंध, फिजूलखर्ची और दिखावे से दूर यहां की पंचायतों ने शादी-ब्याह जैसे पवित्र आयोजनों में सादगी को नई पहचान देने की पहल की है।

चकराता और उत्तरकाशी के कई गांवों में हाल ही में हुए ग्राम सभाओं में ऐसे सख्त सामाजिक नियम बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य विवाह समारोहों को सरल, मर्यादित और सांस्कृतिक रूप से स्वस्थ बनाना है। अब इन इलाकों में शादियों के दौरान महिलाएं केवल तीन गहने — नाक की पिन, मंगलसूत्र और झुमके पहन सकेंगी। साथ ही शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू किया गया है।

 महिलाओं ने खुद आगे बढ़कर लिया फैसला

चकराता के कंधड़ और इंद्रोली गांवों की पंचायतों ने यह फैसला महिलाओं की पहल पर लिया। महिलाओं ने कहा कि महंगे गहनों का दबाव अब सामाजिक बोझ बन गया है। सोने की बढ़ती कीमतों और प्रतिस्पर्धा के चलते गरीब परिवारों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा था।

कंधड़ गांव की 45 वर्षीय लीको देवी ने बताया — “पहले शादी के भोज में बुलावा खुशी की बात होती थी, पर अब हर कोई देखता था कि किसने कितने गहने पहने हैं। अब हम सबने तय किया है कि सिर्फ तीन गहने पहनेंगे, ताकि किसी पर बोझ न पड़े।”

 शराब पर भी सख्त रोक और जुर्माना

नए नियमों के तहत शादी या मुंडन जैसे समारोहों में शराब परोसना पूरी तरह वर्जित कर दिया गया है। जो परिवार इस नियम का उल्लंघन करेगा, उस पर ₹50,000 से ₹51,000 तक का जुर्माना लगाया जाएगा और उसका सामाजिक बहिष्कार किया जा सकता है।

उत्तरकाशी जिले के डुंडा ब्लॉक के लोदरा गांव की ग्राम प्रधान कविता बुटोला ने कहा, “हमारा कोई भी ग्रामीण ऐसी शादी में शामिल नहीं होगा, जहां शराब परोसी जाती है। हमने यह फैसला महिला मंगल दल और युवक मंगल दल की बैठक में सर्वसम्मति से लिया है।”

परंपरा की ओर लौटने की कोशिश

गांव के बुजुर्ग और युवा इस बदलाव को उत्साहपूर्वक अपना रहे हैं। कंधड़ के वरिष्ठ नागरिक अर्जुन सिंह ने कहा — “गहने कभी सुख का प्रतीक हुआ करते थे, लेकिन अब चिंता का कारण बन गए हैं। यह नियम गरीब परिवारों के लिए राहत की तरह हैं।”

वहीं 56 वर्षीय टीकम सिंह ने कहा — “पहले शादियों में रस्म, गीत-संगीत और रिश्तों की बात होती थी, अब चर्चा महंगे स्टेज, डीजे और शराब पर होती है। नए नियम हमें फिर से अपनी परंपरा की ओर लौटने का मौका देंगे।”

 सामाजिक समानता की दिशा में पहल

इन गांवों का यह कदम न केवल दिखावे और फिजूलखर्ची के खिलाफ है, बल्कि सामाजिक समानता और सांस्कृतिक अस्मिता को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी है। ग्रामीणों का मानना है कि जब समाज के हर वर्ग में समान आचरण और सादगी होगी, तभी रिश्तों की असली गर्माहट लौटेगी।

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