पहाड़ की संस्कृति संजोए रखने की पहल, चमोली के स्कूलों में दिया जा रहा है ढोल प्रशिक्षण
उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ जो कि हर मंगल कार्यों के साथ-साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके संरक्षण न होने के कारण यह संस्कृति विलुप्त हो रही है। पहाड़ की इस विरासत को संजोए रखने के लिए अब कदम उठाए जा रही हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग की ओर से लोक संस्कृति और संगीत के संरक्षण को लेकर नवाचारी शिक्षा के तहत ढोल प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसे लेकर विभाग ने जीआईसी गोपेश्वर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस दौरान प्रशिक्षकों ने छात्रों को ढोल वादन और ढोल की बनावट के विषय में जानकारी दी।
जीआईसी गोपेश्वर में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ हेमवंती नंदन बहुगुणा विवि के कला निष्पादन केंद्र के संस्थापक प्रोफेसर डीआर पुरोहित ने दीप प्रज्जवलित कर किया। उन्होंने कहा कि चमोली में शिक्षा विभाग की इस पहल ने ढोल के संरक्षण को लेकर बड़ी पहल की है। मुख्य शिक्षा अधिकारी कुलदीप गैरोला ने कहा कि विभाग ने जिला प्रशासन के सहयोग से नई शिक्षा नीति के तहत नवाचारी कदम उठाते हुए लोक संस्कृति के संरक्षण के लिये ढोल प्रशिक्षण का कार्यक्रम शुरु किया है। इस दौरान हरीश व गिरीश ने छात्रों को धुंयाल, पंचनाम नौबत, उकाल-उंदार की ढोल ताल के साथ ही पांडवानी, चैती और अन्य लोकधुनों और नंदानगर घाट में मां नंदा के विशिष्ट जागरों के विषय में भी छात्रों को जानकारी दी।
इस मौके पर कला निष्पादन केंद्र के डॉ. संजय पांडे, प्रधानाचार्य कर्मवीर सिंह, अतुल सेमवाल, विनोद पुरोहित, शिशुपाल सिंह नेगी, सुशील खंडूरी, धर्मसिंह चैहान आदि मौजूद थे।