भारत ज्ञान, सभ्यता और संस्कृति का आदि देश: प्रो. प्रवीण

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के आईकेएस सेंटर और फैकल्टी ऑफ एजुकेशन की ओर से भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयाम एवम् स्रोत ग्रंथ पर गेस्ट लेक्चर, दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रो. प्रवीण कुमार तिवारी ने बतौर मुख्य वक्ता की शिरकत

हमारी 14 विद्याओं में है अनुसंधान, व्याख्यान, तर्क, गणित, शिक्षा, ज्योतिष, दर्शन का मूल
प्राचीन भारतीय साहित्य शाश्वत ज्ञान और कौशल का खजाना: डॉ. अलका अग्रवाल
प्रो. एमपी सिंह की छात्रों को सीख, व्याख्यान सुनते समय नोटबुक और पेन हमेशा रखें साथ

दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रो. प्रवीण कुमार तिवारी ने कहा, भारतवर्ष संपूर्ण ज्ञान का आलोक, सभ्यता और संस्कृति का आदि देश है। भारतीय ज्ञान परंपरा है। चाहे अनुसंधान, व्याख्यान, तर्क, गणित, शिक्षा, ज्योतिष, दर्शन सभी का मूल हमारी 14 विद्याओं- चार वेद, छह वेदांग, आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दंड नीति में निहित है। समय-समय पर विभिन्न आचार्यों के द्वारा साहित्य आदि अन्य विद्याएं जोड़कर इनकी संख्या 31 से 33 भी बताई गई है। हमारे विशाल भारतीय साहित्य को भारतवर्ष में आने वाले अनेक आक्रमणकारियों के द्वारा शनैः-शनैः समाप्त किया गया है। आज समय है, हम अपने ज्ञान, सभ्यता और अपनी भारतीय समृद्ध परंपरा को संरक्षित करें। उसका संवर्धन करें और अपनी युवा पीढ़ी को उससे परिचित कराएं। उन्होंने ज्ञान, कर्म, दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, गणित, खगोल शास्त्र, भाषा विज्ञान, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति, प्राचीन भारतीय स्रोत ग्रंथ सभी पर अपने गहन अध्ययन एवम् परख की स्टुडेंट्स से विस्तार से चर्चा की। इससे पूर्व शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनि शाखा के 40वें अध्याय ईशावास्योपनिषद के मंगलाचरण से प्रो. तिवारी ने अपना संबोधन आरंभ किया। प्रो. प्रवीण तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के आईकेएस सेंटर और फैकल्टी ऑफ एजुकेशन की ओर से भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयाम एवम् स्रोत ग्रंथ पर आयोजित गेस्ट लेक्चर में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। इससे पहले डीयू के प्रो. तिवारी ने बतौर मुख्य वक्ता, टीएमयू की डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन, डीन स्टुडेंट्स वेलफेयर प्रो. एमपी सिंह, ज्वाइंट रजिस्ट्रार जनरल एडमिनिस्ट्रेशन एवम् आईकेएस कोऑर्डिनेटर डॉ. अलका अग्रवाल, डॉ. विनोद जैन आदि ने ऑडी में मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके गेस्ट लेक्चर का शंखनाद किया। कार्यक्रम में सभी अतिथियों का बुके देकर स्वागत किया गया। अंत में स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के संग हुआ।

मुख्य वक्ता प्रो. प्रवीण कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, हमारा संपूर्ण संस्कृत साहित्य वैदिक और लौकिक रूप में अत्यधिक समृद्ध है। इसमें वेदांग, ब्राह्मण, कल्प सूत्र आरण्यक, स्मृति ग्रंथ, दर्शन, धर्मशास्त्र, साहित्य सभी कुछ निहित है। 14 विद्याओं और 64 कलाओं का आगार भारत वर्ष वह स्थल है, जहां सर्वप्राचीन आविष्कारक, दार्शनिक और गणितज्ञ जन्में हैं। प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञान की चरम सीमा को लांघने वाले तथ्यात्मक ज्ञान स्त्रोत भारतीय मिट्टी के कण-कण में बसे हुए हैं। देरी उनको समझने, जानने और पहचानने में है। उन्होंने अपनी संस्कृति सभ्यता के मूल में निहित भारतीय ज्ञान परंपराओं की समृद्धता को न केवल पाठ्यक्रम के जरिए, वरन अपने जीवन मूल्यों, गतिविधियों, शिक्षा, संस्कृति आदि से एकीकृत करने पर जोर दिया।

आईकेएस कोऑर्डिनेटर डॉ. अलका अग्रवाल ने बताया, हमारी ज्ञान परंपरा इतनी समृद्ध, विराट और विशाल है। आज भी भारत के पास ज्ञान का अपार भंडार है, जिसकी कई पांडुलिपियां अभी भी खोजी जानी बाकी हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में दर्शन, व्यावहारिक शिक्षा, कला, कौशल, शिल्प कौशल, कृषि, स्वास्थ्य और विज्ञान शामिल हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य शाश्वत ज्ञान और कौशल का खजाना है, जो आधुनिक दुनिया में अभी भी प्रासंगिक है। हमारा लक्ष्य सिर्फ भारतीय ज्ञान प्रणालियों के बारे में सीखना नहीं है, बल्कि उस सीख को वर्तमान में लागू करना भी है। डीन स्टुडेंट्स वेलफेयर प्रो. एमपी सिंह ने छात्रों को सीख देते हुए कहा, किसी भी व्याख्यान के समक्ष उपस्थित होने की कला में महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्मृतियों में रखने के लिए नोटबुक और पेन का होना जरूरी है। बीए-बीएड के छात्र अतींद्र कुमार झा ने रश्मिरथी के तृतीय खंड का पाठ किया। कार्यक्रम में संयोजिका कुमारी रुबी शर्मा, श्री दीपक मलिक आदि मौजूद रहे। संचालन कल्चरल कोऑर्डिनेटर एवम् टीएमयू आईकेएस की मेंबर डॉ. सुगंधा जैन ने किया।

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