देहरादून : घंटाघर की घड़ियां बंद, दून की ऐतिहासिक धड़कनें थमीं

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का प्रतिष्ठित घंटाघर, जिसे शहर की धड़कन कहा जाता है, कई दिनों से अपनी ऐतिहासिक घड़ियों की आवाज़ से महरूम है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि न तो शासन और न ही प्रशासन की नजर इस ओर जा रही है। जिन विभागों को इसके रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उन्होंने भी इस ऐतिहासिक धरोहर को उपेक्षित छोड़ दिया है।

 

सन् 1951 में उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल सरोजिनी नायडू द्वारा उद्घाटित यह घंटाघर अपने आप में अनूठा है — इसमें छह घड़ियां और छह कोण हैं, जो इसे देशभर में विशेष बनाते हैं। वर्षों से यह न केवल समय बताने का माध्यम रहा है, बल्कि दून की पहचान का प्रतीक भी बना रहा है।

 

वर्तमान में, घंटाघर की सभी घड़ियां बंद पड़ी हैं और यह धीरे-धीरे जर्जर स्थिति की ओर बढ़ रहा है। इसका रखरखाव मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमडीडीए) के अधीन है, लेकिन नज़रअंदाज़ी और लापरवाही के कारण इसकी हालत बद से बदतर हो गई है।

 

शहर के तमाम अधिकारी रोज़ाना इस मार्ग से गुजरते हैं, लेकिन घंटाघर की बदहाली को देखना भी शायद उनकी प्राथमिकता में नहीं है। एक ओर जहां सौंदर्यीकरण की योजनाओं पर चर्चा हो रही है, वहीं इसकी मूल आत्मा — यानी इसकी घड़ियों की मरम्मत — पूरी तरह से उपेक्षित है।

 

यह प्रश्न उठना लाज़िमी है कि क्या ऐतिहासिक विरासतों का महत्व केवल दिखावे तक ही सीमित रह गया है? दून के इस गौरव को फिर से जीवंत करने की जरूरत है — ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसके गौरवपूर्ण इतिहास से जुड़ सकें।

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