इको टूरिज्म से चमकेंगे उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्र, बजट आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम

देहरादून: उत्तराखंड में वन्यजीव संरक्षण और प्राकृतिक धरोहरों के संवर्धन के लिए एक नई पहल की जा रही है, जिससे राज्य के संरक्षित क्षेत्रों की दशा और दिशा दोनों में सुधार की उम्मीद बंधी है। अब इन संरक्षित क्षेत्रों को इको टूरिज्म से होने वाली आय से सीधे जोड़ने की योजना तैयार की जा रही है, ताकि मेंटेनेंस से लेकर आधारभूत संरचनाओं के विकास तक के कार्यों में आत्मनिर्भरता लाई जा सके।

अब सरकार पर निर्भरता नहीं

अभी तक की व्यवस्था के तहत संरक्षित क्षेत्रों से होने वाली इको टूरिज्म की आमदनी सीधे राज्य सरकार के खजाने में जाती थी। उसके बाद क्षेत्रीय प्रबंधन को आवश्यक कार्यों के लिए बजट हेतु सरकार की ओर देखना पड़ता था। इससे कई बार समय पर संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाते और जरूरी कामों में बाधा आती रही है।

नए प्रस्ताव से खुलेगा रास्ता

अब वन विभाग ने एक नया प्रस्ताव तैयार किया है, जिसमें इको टूरिज्म से प्राप्त होने वाली आय का 80 प्रतिशत हिस्सा सीधे उस संरक्षित क्षेत्र में खर्च किया जा सकेगा जहां से यह आय हुई है। शेष 20 प्रतिशत हिस्सा सरकार को जाएगा। इससे क्षेत्रों में बेहतर प्रबंधन, मरम्मत, सुरक्षा व्यवस्था, ट्रेकिंग रूट्स, सूचना केंद्रों और अन्य सुविधाओं के विकास में आसानी होगी।

राजाजी और कॉर्बेट बने उदाहरण

राजाजी टाइगर रिजर्व और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व इस मॉडल का उदाहरण हैं, जहां पहले से ही फाउंडेशन गठित हैं। इन फाउंडेशनों के माध्यम से प्राप्त होने वाली पूरी आय को स्थानीय कार्यों में लगाया जाता है। यही कारण है कि इन दोनों संरक्षित क्षेत्रों में बजटीय समस्याएं अपेक्षाकृत कम रही हैं।

बाकी क्षेत्रों में भी लागू होगा मॉडल

उत्तराखंड में केवल राजाजी और कॉर्बेट ही नहीं, बल्कि नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व, गंगोत्री नेशनल पार्क, फूलों की घाटी और गोविंद राष्ट्रीय उद्यान जैसे कई संरक्षित क्षेत्र मौजूद हैं। लेकिन इन क्षेत्रों में अभी तक कोई स्थायी वित्तीय व्यवस्था नहीं है। नए प्रस्ताव में इन्हीं क्षेत्रों को शामिल कर आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है।

बैठकें हो चुकी हैं, मंजूरी का इंतजार

वन विभाग की ओर से इस प्रस्ताव को लेकर एक दौर की बैठक भी हो चुकी है और विभागीय स्तर पर इसे लेकर सहमति बनती दिखाई दे रही है। जल्द ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी मिल सकती है, जिसके बाद यह व्यवस्था औपचारिक रूप से लागू हो जाएगी।

राज्य को भी मिलेगा फायदा

इस नीति के लागू होने से न केवल संरक्षित क्षेत्रों में सुविधाएं बढ़ेंगी, बल्कि पर्यटन से जुड़ी स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। साथ ही राज्य सरकार को पर्यटन कर और अन्य माध्यमों से आय होती रहेगी, जिससे समग्र विकास को गति मिलेगी।

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