उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सहकारिता चुनाव के नए नोटिफिकेशन पर लगाई रोक, दो सप्ताह में जवाब देने का निर्देश

सहकारिता चुनाव प्राधिकरण के नोटिफिकेशन को चुनौती, हाई कोर्ट ने 18-19 मार्च के चुनाव पर रोक लगाई

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में सहकारिता चुनाव के नए नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी है। यह आदेश एकलपीठ न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की अध्यक्षता में सुनवाई के दौरान दिया गया। कोर्ट ने सहकारिता चुनाव प्राधिकरण को दो सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस फैसले से राज्य में आगामी 18-19 मार्च को होने वाले सहकारिता चुनावों की प्रक्रिया पर बड़ा असर पड़ सकता है।

क्या है मामला?
हरिद्वार निवासी राजवीर सिंह और अन्य याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि सहकारिता चुनाव प्राधिकरण ने शेष पदों के लिए नए चुनावों की तारीखों का नोटिफिकेशन जारी किया था। यह चुनाव 18-19 मार्च को प्रस्तावित थे। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि इस नोटिफिकेशन को जारी करने में नियमों का उल्लंघन किया गया है, जबकि इससे पहले हाईकोर्ट ने सहकारिता चुनाव पर पहले ही रोक लगाई थी।

कोर्ट का निर्णय:
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने मामले की सुनवाई करते हुए सहकारिता चुनाव प्राधिकरण के द्वारा जारी किए गए नए नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने आदेश दिया कि प्राधिकरण को दो सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब पेश करना होगा। इसके अलावा, चुनाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से भी रोक लगा दी गई है।

सहकारिता चुनाव की स्थिति:
उत्तराखंड में अब तक 93 प्रतिशत सहकारी समितियों के चुनाव निर्विरोध हो चुके हैं, लेकिन शेष पदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया अभी भी चल रही थी। हाल ही में राज्य सरकार ने सहकारिता चुनाव परिणाम पर रोक लगा दी थी, और चुनाव प्राधिकरण के वाद को खारिज कर दिया था। इस बीच, सहकारिता चुनाव प्राधिकरण ने शेष पदों के लिए चुनाव की तारीखें घोषित की थीं, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे स्थगित कर दिया है।

आगे की सुनवाई:
अब यह देखने वाली बात होगी कि सहकारिता चुनाव प्राधिकरण इस मामले में अदालत को किस तरह का जवाब प्रस्तुत करता है और क्या आगामी चुनावों की प्रक्रिया में और देरी होती है या नहीं। इस फैसले ने राज्य में सहकारिता चुनाव की प्रक्रिया पर एक नया मोड़ ला दिया है और इसके परिणामों का इंतजार किया जा रहा है।

निष्कर्ष:
इस फैसले से सहकारिता चुनाव की प्रक्रिया में और अनिश्चितता आ गई है, और सभी की नजरें इस पर टिकी रहेंगी कि हाईकोर्ट अगले कदम के तौर पर क्या आदेश देता है।

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