सड़कों पर जनता: स्वास्थ्य सेवाओं और शराब नीति को लेकर राज्य में बढ़ा जन आक्रोश

देहरादून।
उत्तराखंड की जनता इन दिनों कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर सरकार से नाराज है। एक ओर राज्यभर में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों का आंदोलन तेजी से फैल रहा है, वहीं दूसरी ओर शराब ठेकों और बढ़ते आपराधिक मामलों ने भी जनता के गुस्से को सड़कों पर ला दिया है।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर फूटा जन आक्रोश

अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया से शुरू हुआ जन आंदोलन अब पूरे राज्य में फैल चुका है। आंदोलनकारी अब देहरादून की ओर पदयात्रा पर हैं, जहां वे मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के आवास का घेराव करने की योजना बना रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि टिहरी में हाल ही में एक महिला की प्रसव के दौरान मौत के बाद वहां भी आंदोलन शुरू हो गया है।

राज्य के कई इलाकों में आज भी लोग कंधों पर मरीजों को ढोकर अस्पताल पहुंचाने को मजबूर हैं। लेकिन अस्पतालों में न डॉक्टर हैं, न उपकरण और न ही दवाइयां।
स्वास्थ्य मंत्री भले ही सुधार के दावे करें, पर जनता का अनुभव कुछ और ही कहानी कहता है।

शराब ठेकों पर बढ़ा आक्रोश, हत्या के बाद भड़की नाराज़गी

उधर ऋषिकेश के मुनि की रेती क्षेत्र में हुए अजय कंडारी हत्याकांड ने एक बार फिर शराब ठेकों की वैधता और सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
खाराश्रोत शराब के ठेके के पास हुई इस वारदात के बाद स्थानीय लोगों ने ठेका हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, पर जनता का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है — इस ठेके के आसपास पहले भी कई अपराध घट चुके हैं।
महिलाओं ने फिर से ठेका बंद करने की मांग उठाई है।

राज्य सरकार के “नशा मुक्त उत्तराखंड” के नारे पर अब जनता सवाल उठा रही है। पहाड़ों में शराब और नशे का फैलता जाल अब सामाजिक संकट का रूप ले चुका है।

अन्य मुद्दों पर भी जनता में असंतोष

स्वास्थ्य और शराब के अलावा खराब सड़कों, आपदा राहत, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर भी जनता नाराज़ है। कई स्थानों पर ग्रामीण आंदोलन उभर रहे हैं, जिनमें युवाओं और महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिख रही है।

राज्य की जनता का कहना है कि विकास के वादों के बावजूद जमीन पर हालात जस के तस हैं।
अब सवाल यह है कि क्या सरकार जनता की इन आवाज़ों को सुनेगी या फिर यह आक्रोश आगे और तेज़ होगा।

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