चमोली में रम्माण के भव्य आयोजन की तैयारी: पौराणिक संस्कृति की अद्वितीय झलक, यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर

चमोली, उत्तराखंड: उत्तराखंड के चमोली जिले में रम्माण उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं। यह आयोजन हर साल अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले होता है, और इस साल भी स्थानीय प्रशासन ने इसे भव्य बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। रम्माण, जो अपनी अद्वितीय नाट्य शैली और मुखौटों के लिए प्रसिद्ध है, 2009 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। इसे अब न केवल स्थानीय आस्था और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है, बल्कि यह दुनियाभर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण भी बन चुका है।

जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बैठक: आयोजन को भव्य रूप देने की कवायद शुरू

चमोली के सलूड़-डुंग्रा गांव में आयोजित होने वाले इस रम्माण उत्सव के लिए जिला प्रशासन ने तैयारियों को गति दी है। जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने हाल ही में जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ बैठक की, जिसमें रम्माण के आयोजन को भव्य बनाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए। उन्होंने पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे को आयोजन स्थल को फूलों और लाइटों से सजाने, साथ ही दर्शकों के बैठने की उचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए। जिलाधिकारी ने रम्माण के प्रचार-प्रसार के लिए मीडिया और सोशल मीडिया का सहयोग लेने की भी बात की।

रम्माण का महत्व: एक सांस्कृतिक धरोहर और आस्था का प्रतीक

रम्माण मेला सलूड़-डुंग्रा गांव की एक पुरानी परंपरा है, जो सालों से यहां की आस्था और संस्कृति का हिस्सा रहा है। इस उत्सव के दौरान रामायण के प्रमुख प्रसंगों का नाट्य रूप में मंचन किया जाता है, लेकिन इसमें संवाद नहीं होते, बल्कि गीतों और ढोल-ताल की धुन पर मुखौटा शैली में रामायण का मंचन होता है। रम्माण में विभिन्न पात्रों जैसे राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के अभिनय से रामायण के प्रमुख प्रसंगों को जीवंत किया जाता है।

रम्माण उत्सव में भोजपत्र से बने 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं और 8 भंकोरे का प्रयोग किया जाता है। यह मेला लगभग 10 से 15 दिनों तक चलता है और इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य और गायन का आयोजन होता है। खास बात यह है कि रम्माण का आयोजन बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले किया जाता है, जिससे यह आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।

यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल रम्माण: अंतरराष्ट्रीय मान्यता

रम्माण के इस अनूठे उत्सव को 2009 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी। यह आयोजन न केवल चमोली जिले, बल्कि समग्र उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। विश्व धरोहर के रूप में रम्माण ने देश और विदेश से आने वाले पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया है। इसका मंचन न केवल स्थानीय लोगों की आस्था को प्रकट करता है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक जीवंत उदाहरण भी है।

रम्माण का आकर्षण: गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाली पहली सांस्कृतिक परंपरा

रम्माण के आयोजन को और भी गौरवमयी बनाता है 2016 में इसका गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेना। यह पहली बार था जब रम्माण को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किया गया था, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। इस आयोजन ने न केवल स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा दिया, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को पूरे देश के सामने प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुआ।

उत्तराखंड का रम्माण महोत्सव यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक धरोहर के रूप में  सूचीबद्ध

रम्माण का भविष्य: संरक्षण और प्रचार-प्रसार की दिशा में प्रशासन की पहल

चमोली जिला प्रशासन ने रम्माण उत्सव के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए कई कदम उठाए हैं। जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने मीडिया और सोशल मीडिया का सहयोग लेकर इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट करने की योजना बनाई है। साथ ही, स्थानीय पर्यटन उद्योग को भी इस आयोजन से जोड़ने की दिशा में कार्य किया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक लोग इस अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर से परिचित हो सकें और इस उत्सव का आनंद उठा सकें।

रम्माण, जो एक अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक अनुष्ठान है, चमोली जिले की पहचान बन चुका है। इसका आयोजन न केवल स्थानीय आस्था और परंपराओं को सहेजने का एक माध्यम है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विविधता का भी प्रतिनिधित्व करता है। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद यह आयोजन और भी महत्वपूर्ण हो गया है और आने वाले समय में यह भारतीय और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान और महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखेगा।

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