उत्तराखंड में सियासी बवंडर! प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद सरकार और संगठन के रणनीतिकारों की विफलता पर उठे सवाल
देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों सियासी हलचल चरम पर है। राज्य में राजनीतिक बवंडर मच चुका है, और विपक्ष ने सत्ता पक्ष के प्रबंधन तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। खासकर, भाजपा और सरकार के रणनीतिकारों की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्या सरकार और संगठन के प्रबंधन तंत्र ने समय रहते इस सियासी प्रकरण को नियंत्रित करने की कोशिश की? या यह उनकी विफलता का परिणाम है? इन सवालों ने राज्य की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है, और अब इस पर चर्चाएं जोरों पर हैं।
प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा और भाजपा की स्थिति
उत्तराखंड में भाजपा के पूर्व मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के विवादास्पद बयान के बाद राजनीति में हलचल मच गई। प्रेमचंद ने सदन में पहाड़वासियों के खिलाफ अपशब्द कहे थे, जिस पर भारी विरोध हुआ। हालांकि, बाद में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम समय रहते उठाया गया था, या इस पर देर की गई? राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर इस मामले में त्वरित कार्रवाई की गई होती, तो शायद यह पूरे प्रकरण का विस्तार नहीं होता और भाजपा की छवि पर इतना बड़ा दाग नहीं लगता।
राजनीतिक जानकारों की राय
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा और सरकार ने प्रेमचंद अग्रवाल के मामले में बहुत देर की। जब यह मामला सामने आया, तब डैमेज कंट्रोल की शुरुआत होनी चाहिए थी। लेकिन जब तक इस मुद्दे पर कार्रवाई की गई, तब तक पार्टी के नेताओं और संगठन की ओर से उनके पक्ष में बयान दिए जा रहे थे। इससे भाजपा की छवि को काफी नुकसान हुआ है। इसके साथ ही, पहाड़ और मैदान के बीच की खाई भी और गहरी हो गई, जो राज्य की राजनीति में एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
कांग्रेस का हमला और विपक्ष का आरोप
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महरा ने इस मुद्दे पर तीखा हमला करते हुए कहा कि सरकार और संगठन का प्रबंधन तंत्र पूरी तरह से विफल हो गया है। उनका कहना था कि प्रेमचंद अग्रवाल को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए था, लेकिन इससे पहले उनका बयान और प्रेसवार्ता बेहद दुर्भाग्यपूर्ण थी। अगर अग्रवाल अपने बयान में कहते कि उन्हें आत्मग्लानि हुई है और वह अपनी गलती के लिए इस्तीफा दे रहे हैं, तो उनका सम्मान बढ़ता और कांग्रेस के नजरिए में भी उनका कद बढ़ता।
कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी, और कहा कि 21 फरवरी को जब प्रेमचंद अग्रवाल ने पहाड़वासियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, उसके बाद से पहाड़वासी पूरी तरह से इस मुद्दे पर नजर बनाए हुए थे। उनके अनुसार, भाजपा नेतृत्व ने इस घाव की गंभीरता का सही आकलन नहीं किया और इसे समय पर सुलझाने की कोशिश नहीं की, जिसके कारण पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ।
भा.ज.पा. की प्रतिक्रिया
भा.ज.पा. के वरिष्ठ नेता विनोद चमोली ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष केवल मुद्दों को जीवित रखकर राजनीति करना चाहता है। उनकी मंशा प्रदेश को मजबूत करना नहीं, बल्कि भाजपा को कमजोर करना है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि कांग्रेस के पास कोई ठोस दृष्टि नहीं है और वह हमेशा नकारात्मक भूमिका निभाने की कोशिश करती है।
राज्यमंत्री देवेंद्र भसीन ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि कांग्रेस की नीति हमेशा विरोध करने की रही है। चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम हों या राज्य में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के, कांग्रेस हमेशा विरोध करती है, लेकिन प्रदेश के विकास के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे राज्यहित में हैं।
सियासी संकट और आगामी चुनौतियां
उत्तराखंड में भाजपा सरकार और संगठन की रणनीति पर उठे सवाल अब बड़े मुद्दे बन चुके हैं। प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद, सरकार और संगठन के आंतरिक प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इस मामले को मुद्दा बनाकर सरकार की नाकामी को उजागर कर रही है। इसके अलावा, पहाड़ और मैदान के बीच बढ़ी हुई खाई भाजपा के लिए आगामी चुनावों में एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
भले ही भाजपा के नेता इस पूरे घटनाक्रम को विपक्ष की साजिश बता रहे हों, लेकिन यह तथ्य साफ है कि अगर समय रहते इस मामले को संभाला गया होता, तो पार्टी की छवि पर इतना बुरा असर नहीं पड़ता। अब यह देखना होगा कि आगामी दिनों में भाजपा इस सियासी संकट से कैसे निपटती है और क्या उसे इससे कुछ सिखने को मिलता है।