देहरादून आपदा: 101 साल बाद फिर डूबा दून, क्या धराली त्रासदी से जुड़ा है कनेक्शन?

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 101 साल बाद फिर वही मंजर दोहराया गया, जिसने एक बार फिर विकास और विनाश के रिश्ते पर सवाल खड़े कर दिए हैं। नदियों के रोद्र रूप ने राजधानी के आधे से ज्यादा हिस्से को तबाह कर दिया। सहस्त्रधारा, मालदेवता से लेकर टपकेश्वर और प्रेमनगर तक, हर तरफ सिर्फ मलबा, टूटी सड़कें और उजड़े घर नज़र आ रहे हैं।

एक ही रात में उजड़ा दून

15 और 16 सितंबर की दरम्यानी रात सहस्त्रधारा के ऊपरी इलाके में बादल फटने के बाद ऐसी तबाही मची कि राजधानी का नक्शा ही बदल गया। कभी छोटी और शांत दिखने वाली नदियां और नाले अचानक पुराने स्वरूप में लौट आए और जो कुछ उनके रास्ते में आया, सब बहा ले गए।

  • 13 लोगों की मौत की पुष्टि

  • 13 पुल बह गए

  • 62 सड़कें तबाह

  • सैकड़ों घर, होटल और दुकानें नदी में समा गए

प्रशासन ने मरने वालों की आधिकारिक संख्या 13 बताई है, लेकिन लापता लोगों का आंकड़ा इससे कहीं बड़ा हो सकता है।

कभी सोना देती थी रिस्पना नदी

दून घाटी की नदियां – आसन, टोंस, सुसवा और रिस्पना – कभी इस क्षेत्र की जीवनरेखा हुआ करती थीं। रिस्पना नदी में तो सोना तक मिलने की बात कही जाती थी। मगर आज यही नदियां कंक्रीट और लालच की बलि चढ़ चुकी हैं।

नदी किनारों पर होटल, होमस्टे और सरकारी इमारतें तक खड़ी कर दी गईं। यहां तक कि सूखी दिखाई देने वाली नदी की पट्टियों पर भी टैक्सी स्टैंड और दुकानें बना ली गईं। लेकिन नदियां कभी अपना रास्ता नहीं भूलतीं, और अब उन्होंने वही रास्ता वापस ले लिया है।

धराली आपदा से क्या समानता?

देहरादून की त्रासदी को देखकर लोगों को हाल ही की धराली आपदा याद आ गई। वहां खीर गंगा के किनारे बसे धराली गांव को मलबे ने निगल लिया था। पुरखों ने नदी किनारे बसावट से हमेशा परहेज किया था, लेकिन तथाकथित “विकास” की अंधी दौड़ ने इन परंपराओं को तोड़ दिया।

धराली हो या देहरादून – दोनों जगह एक जैसी गलती दोहराई गई और दोनों ही जगह नदियों ने इंसानी लालच को बेनकाब कर दिया।

1924 के बाद 2025 – सहस्त्रधारा का दोहराया इतिहास

साल 1924 में भी सहस्त्रधारा ने ऐसा ही रूप दिखाया था। 101 साल बाद वही तबाही फिर दोहराई गई।
कभी गंधक के पानी और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर सहस्त्रधारा अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुकी है। यही कारण है कि आपदा का सबसे बड़ा प्रहार भी यहीं देखने को मिला।

नियमों की अनदेखी और ‘स्मार्ट सिटी’ का सच

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के अनुसार नदियों के दोनों किनारों से कम से कम 100 मीटर तक निर्माण नहीं होना चाहिए। लेकिन देहरादून में विकास के नाम पर हर नियम को ताक पर रख दिया गया।

आज स्थिति ये है कि राजधानी एक “वॉटर बम” पर बैठी है, जो कभी भी फट सकता है। सवाल यह है कि –

  • क्या देहरादून राजधानी बनने का दंश झेल रहा है?

  • स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स असल में विकास हैं या आने वाली और बड़ी तबाही का खाका?

  • “देहरादून की डूबती तस्वीर: 101 साल बाद दोहराया इतिहास, धराली से मिलती त्रासदी की गूंज”

  • “स्मार्ट सिटी या वॉटर बम? 101 साल बाद फिर बहा देहरादून”

  • “धराली से देहरादून तक: क्या इंसानी लालच ने ही बुलाया जल प्रलय?”

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