नैनीताल: पंचायत चुनाव से ठीक पहले हाई कोर्ट का बड़ा फैसला,निर्वाचन आयोग के आदेश पर रोक

“पंचायत चुनाव से पहले हाईकोर्ट की सख्ती: एक व्यक्ति, एक वोट – निर्वाचन आयोग के आदेश पर रोक”
6 जुलाई के स्पष्टीकरण आदेश को हाईकोर्ट ने माना नियमविरुद्ध, निर्वाचन प्रक्रिया पर पड़ेगा असर

नैनीताल / देहरादून, उत्तराखंड में प्रस्तावित पंचायत चुनावों से ठीक पहले राज्य निर्वाचन प्रक्रिया को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने चुनाव याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि एक व्यक्ति केवल एक ही स्थान का वोटर हो सकता है और वहीं से चुनाव भी लड़ सकता है। कोर्ट ने इस संदर्भ में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा 6 जुलाई 2025 को जारी आदेश पर अस्थायी रोक (Stay) लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश जे. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यह फैसला रुद्रप्रयाग निवासी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शक्ति सिंह बर्थवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी के अनुसार, निर्वाचन आयोग ने 6 जुलाई को सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को एक स्पष्टीकरण आदेश जारी कर यह छूट दी थी कि वे पंचायती अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत नामांकन और मतदाता सूचियों की जांच कर सकते हैं।

इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका में कहा गया कि यह “एक व्यक्ति, एक वोटर” के सिद्धांत के विरुद्ध है और इससे दोहरी वोटर एंट्री और चुनाव लड़ने की संभावना बढ़ सकती है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील को सही और वैध मानते हुए 6 जुलाई के आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। साथ ही, यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी व्यक्ति केवल एक ही पंचायत क्षेत्र का वोटर हो सकता है और वहीं से चुनाव लड़ने का अधिकारी होगा।

क्या होगा आगे?

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि निर्वाचन आयोग नए सिरे से स्क्रूटिनी (जांच प्रक्रिया) नहीं करता है, तो यह अवमानना की श्रेणी में आ सकता है। अब आयोग पर यह दायित्व है कि वह इस आदेश के आलोक में आगे की चुनाव प्रक्रिया तय करे

अधिवक्ता अभिजय नेगी ने कहा कि अब हर वह व्यक्ति जो एक से अधिक स्थानों पर मतदाता के रूप में पंजीकृत है, उसे एक स्थान का चयन करना होगा, अन्यथा उसका नाम किसी एक जगह से हटाया जाएगा।

प्रभाव और संकेत:

इस आदेश से न केवल आगामी पंचायत चुनावों की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, बल्कि यह आदेश राज्य चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
यह फैसला यह भी सुनिश्चित करेगा कि कोई व्यक्ति राजनीतिक लाभ या शक्ति संतुलन के लिए दोहरे मतदाता बनने की प्रवृत्ति न अपनाए।

हाईकोर्ट का यह फैसला लोकतंत्र की बुनियादी मर्यादा – “एक नागरिक, एक मत” – को सशक्त करता है। निर्वाचन आयोग के लिए यह एक चेतावनी भी है कि वह नियमों के पालन में शिथिलता न बरते।

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