हरीश रावत की ‘काफल पार्टी’ से बीजेपी पर तीखा हमला, लोकल उत्पादों को लेकर साधा निशाना, शराब को लेकर किया कटाक्ष

देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने एक बार फिर अपने खास अंदाज में सियासी तेवर दिखाए। देहरादून के कारगी चौक स्थित एक वेडिंग पॉइंट में आयोजित ‘काफल पार्टी’ में उन्होंने न सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया, बल्कि इस बहाने बीजेपी पर भी जमकर निशाना साधा।

इस कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और हरीश रावत के समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ी। अपने संबोधन में हरदा ने लोकल उत्पादों की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा, “बीजेपी के लिए ‘वोकल फॉर लोकल’ महज एक नारा है, हमारे लिए यह एक मिशन है।”

“बीजेपी को नहीं पता था काफल क्या होता है”

हरीश रावत ने कहा कि जब उन्होंने काफल पार्टी की शुरुआत की थी, बीजेपी नेताओं को काफल का नाम तक नहीं पता था, लेकिन आज वही काफल 600 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने स्थानीय उत्पादों को पहचान दिलाने की दिशा में काम किया, जबकि बीजेपी केवल इसके पीछे चलती रही है।

मंडुवा और गेठी पर भी बोले हरीश रावत

हरदा ने अपने पुराने प्रयासों की याद दिलाते हुए कहा कि 2014 में जब उन्होंने मंडुवे को प्रमोट किया था, तो बीजेपी नेताओं ने उसका मजाक उड़ाया था। तब मंडुवा सिर्फ 5 रुपये प्रति किलो बिकता था, आज वह उत्तराखंड की पहचान बन चुका है। इसी तरह, “जिस गेठी को कोई नहीं जानता था, वह आज 100 रुपये किलो बिक रही है।”

उन्होंने कहा कि अगर सरकार इन उत्पादों को मिशन मोड में ले, तो पलायन और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है, लेकिन यदि यह उपेक्षित रहा, तो ये समस्याएं राज्य के लिए अभिशाप बन जाएंगी।

शराब के नाम पर लोकल उत्पादों की ब्रांडिंग पर हमला

हरदा ने बीजेपी पर स्थानीय उत्पादों के नाम पर शराब बेचने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा,

“हमने काफल के औषधीय गुणों को बढ़ावा दिया, लेकिन बीजेपी ने टेट्रा पैक में ‘काफल’ नाम से शराब बेचना शुरू कर दिया।
हमने माल्टा और पहाड़ी नींबू का प्रचार किया, ताकि किसानों को लाभ मिले, लेकिन बीजेपी ने इन्हीं नामों पर शराब बना दी।”

हरीश रावत ने कहा कि यह अंतर है हमारी सोच और बीजेपी की सोच में — हम जैविक उत्पादों को बढ़ावा देना चाहते हैं, जबकि बीजेपी शराब को।

हरीश रावत की ‘काफल पार्टी’ केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं रही, यह एक राजनीतिक मंच बन गई जहां उन्होंने स्थानीय उत्पादों को लेकर बीजेपी की नीतियों पर तीखा प्रहार किया। लोकल उत्पादों के संवर्धन को लेकर उन्होंने सरकार को आगाह किया कि यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य को सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ेग

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