जलवायु परिवर्तन का असर: समय से पहले पका काफल, नैनीताल मंडी में 400 रुपये किलो बिका
नैनीताल। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इस बार नैनीताल और उसके आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। आमतौर पर अप्रैल-मई में पकने वाला काफल इस साल मार्च के मध्य में ही बाजार में पहुंच गया है।
मंडी में सीजन का पहला काफल
मंगलवार को नैनीताल के मल्लीताल स्थित मंडी में सीजन का पहला काफल पहुंचा, जिसे खरीदने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। सौड़ बग्गड़ क्षेत्र के एक ग्रामीण ने चार किलो काफल मंडी में लाकर बेचा, जिसे 400 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदा गया।

मंडी में मौजूद व्यापारियों और स्थानीय लोगों में इसके समय से पहले पकने को लेकर उत्सुकता और चिंता दोनों देखी गई। कुछ लोगों ने इसकी गुणवत्ता को परखते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चर्चा की।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों में मौसम के असामान्य बदलाव के कारण काफल का सीजन प्रभावित हुआ है। इस बार फरवरी-मार्च में तापमान में असामान्य वृद्धि देखी गई, जिससे फल जल्दी पक गए। आमतौर पर ठंड की लंबी अवधि के कारण काफल अप्रैल-मई में तैयार होता है, लेकिन इस बार मौसम में बदलाव ने इसकी परिपक्वता को प्रभावित किया।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
ग्रामीणों का कहना है कि इस साल न केवल काफल का पकना जल्दी शुरू हुआ, बल्कि इसकी उपज भी सामान्य से कम हो सकती है। किसानों को चिंता है कि जलवायु परिवर्तन इसी तरह जारी रहा तो भविष्य में स्थानीय कृषि और फल उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
काफल का महत्व
काफल उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों का एक लोकप्रिय और मौसमी फल है। इसकी मिठास और रसीले स्वाद के कारण लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं। पारंपरिक रूप से इसे स्वास्थ्यवर्धक भी माना जाता है, जिससे इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी उपलब्धता और गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।
नैनीताल मंडी में पहुंचे पहले काफल ने जहां लोगों को आनंदित किया, वहीं समय से पहले पकने को लेकर चिंता भी बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में स्थानीय कृषि उत्पादन को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।