उत्तराखंड की चिकित्सा में नया इतिहास: दून मेडिकल कॉलेज ने बर्जर रोग के मरीज पर की देश की पहली ‘लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग’ सर्जरी

बीड़ी और तंबाकू के सेवन से बढ़ रही बीमारी, डॉक्टरों ने दी जीवन को नई राह

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित राजकीय दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय ने सर्जरी के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। चिकित्सकों की टीम ने देश में पहली बार बर्जर रोग (Buerger’s Disease) से पीड़ित मरीज का सफल ऑपरेशन किया है। यह सर्जरी पूरी तरह से नई और जटिल तकनीक — “लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग (Laparoscopic Omental Free Grafting)” — के माध्यम से की गई, जिसने न केवल चिकित्सकों की दक्षता को सिद्ध किया, बल्कि देश में चिकित्सा विज्ञान के लिए एक नई दिशा भी तय की।

सफल सर्जरी: बिना पेट काटे, नई तकनीक से रक्त प्रवाह बहाल

जानकारी के अनुसार, बीते शनिवार को दून मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में यह ऐतिहासिक ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन टीम में डॉ. अभय कुमार, डॉ. दिव्यांशु, डॉ. गुल्शेर, डॉ. मोनिका, डॉ. वैभव, डॉ. मयंक, और डॉ. अनूठी सहित कई विशेषज्ञ शामिल थे।
टीम ने बिना पेट पर बड़ा चीरा लगाए लेप्रोस्कोपिक तकनीक का प्रयोग किया। इसमें सिर्फ छोटे छेद बनाकर आंत की झिल्ली (Omentum) को शरीर से निकाला गया और त्वचा के नीचे बनाए गए टनल मार्ग से इसे मरीज के पैरों तक पहुंचाया गया। इस झिल्ली में नई रक्त वाहिकाएँ (Capillaries) विकसित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है, जो पैरों में रुके हुए रक्त प्रवाह को पुनः चालू करती हैं।

डॉक्टरों के अनुसार, “यह प्रक्रिया अत्यंत चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन पूरी टीम ने इसे अत्यधिक सावधानी और सटीकता के साथ पूरा किया। मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है और जल्द ही इस तकनीक पर शोध प्रकाशित किया जाएगा।”

‘बर्जर रोग’ — बीड़ी और तंबाकू सेवन से बढ़ती घातक बीमारी

विशेषज्ञों के अनुसार, बर्जर रोग या थ्रोम्बोएंजाइटिस ऑब्लिटेरन्स (Thromboangiitis Obliterans) मुख्यतः बीड़ी या तंबाकू का सेवन करने वाले पुरुषों में पाई जाती है। यह बीमारी खासकर 40 से 60 वर्ष की आयु के पुरुषों में तेजी से बढ़ रही है।
इस रोग में पैरों की रक्त धमनियों में सूजन आ जाती है, जिससे रक्त प्रवाह रुक जाता है और धीरे-धीरे ऊतक (Tissue) मरने लगते हैं।

बीमारी के तीन मुख्य चरण होते हैं:
क्लॉडिकेशन (Claudication): चलते समय पैरों में असहनीय दर्द।
रेस्ट पेन (Rest Pain): आराम की अवस्था में भी लगातार दर्द।
गैंग्रीन या अल्सर (Gangrene/Ulcer): पैरों में घाव और ऊतक सड़ना शुरू हो जाते हैं।

अब तक इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं था। गंभीर मामलों में मरीज का अंग काटना (Amputation) ही एकमात्र विकल्प बन जाता था।

नवाचार से नई उम्मीद: लेप्रोस्कोपिक तकनीक ने बदला उपचार का स्वरूप

नई तकनीक में इस्तेमाल की गई ओमेंटल झिल्ली शरीर में नई रक्त वाहिकाएँ बनाने में सक्षम होती है। इसे प्रभावित अंगों तक पहुंचाने से वहां नई केशिकाएँ (Capillaries) विकसित होती हैं और रक्त संचार फिर से शुरू हो जाता है।
यह पूरी प्रक्रिया लगभग चार से पाँच दिन में पूरी होती है।
लेप्रोस्कोपिक पद्धति से इस सर्जरी में संक्रमण का खतरा काफी कम होता है और मरीज जल्दी रिकवर करता है। पारंपरिक सर्जरी की तुलना में इसमें दर्द कम, रिकवरी तेज और अस्पताल में भर्ती का समय भी घट जाता है।

दून मेडिकल कॉलेज: पर्वतीय इलाकों के मरीजों के लिए उम्मीद का केंद्र

दून मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग के आंकड़ों के अनुसार, हर महीने औसतन 20 मरीज बर्जर रोग से ग्रसित होकर इलाज के लिए पहुंचते हैं। इनमें से लगभग 15 मरीज पर्वतीय जिलों से आते हैं।
डॉक्टरों के मुताबिक, लंबे समय तक बीड़ी या तंबाकू का सेवन करने से निकोटीन धमनियों की दीवारों में जम जाता है, जिससे सूजन और रक्त प्रवाह अवरोध की स्थिति बनती है। यह रोग अब एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनता जा रहा है।

भविष्य की राह: अंग काटने से बचाव की दिशा में बड़ा कदम

चिकित्सकों का मानना है कि यह ‘लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग’ तकनीक यदि दीर्घकालिक रूप से सफल सिद्ध होती है, तो यह गैंग्रीन या अंग काटने जैसी परिस्थितियों से निपटने में एक क्रांतिकारी समाधान साबित हो सकती है। यह उपलब्धि न केवल दून मेडिकल कॉलेज के लिए गौरव की बात है, बल्कि उत्तराखंड और देश के चिकित्सा इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जा रही है।

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