चमोली। पंचकेदारों में से एक चतुर्थ केदार रुद्रनाथ महादेव मंदिर के कपाट आज शुभ मुहूर्त में शीतकाल के लिए परंपरानुसार विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में मुख्य पुजारी सुनील तिवारी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अंतिम पूजा-अर्चना संपन्न की। पूरे मंदिर परिसर में “हर हर महादेव” और “जय रुद्रनाथ बाबा की” के जयकारे गूंज उठे।
कपाट बंद होने के बाद भगवान रुद्रनाथ जी की उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दी स्थल श्री गोपीनाथ मंदिर (गोपेश्वर) के लिए रवाना हुई। अब अगले छह महीनों तक श्रद्धालु गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ के दर्शन व पूजा-अर्चना कर सकेंगे।
रुद्रनाथ से गोपेश्वर तक यात्रा का पारंपरिक मार्ग
सुबह चार बजे से पूजा-अर्चना शुरू हुई। भगवान रुद्रनाथ की सभी परंपरागत पूजाएं संपन्न कराने के बाद सुबह छह बजे कपाट बंद कर दिए गए। इसके उपरांत साढ़े सात बजे डोली ने प्रस्थान किया। डोली का मार्ग पंचगंगा, पितृधार, पनार बुग्याल और मोली बुग्याल से होते हुए सगर गांव तक रहेगा। मोली बुग्याल और सगर गांव में भगवान को नए अनाज का भोग (राजभोग) लगाया जाएगा। सूर्यास्त से पहले डोली गोपीनाथ मंदिर पहुंच जाएगी, जहां भगवान रुद्रनाथ जी छह माह तक विराजमान रहेंगे।
पुष्प गुच्छों से ढके रहेंगे कपाट
कपाट बंद होने के बाद भगवान को पारंपरिक रूप से 251 मंदार (बुखला) पुष्प गुच्छों से ढका गया। यह पुष्पगुच्छ मंदिर खुलने पर श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किए जाएंगे। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे रुद्रनाथ धाम की विशेष धार्मिक परंपरा माना जाता है।
हिमालय की गोद में विराजमान रुद्रनाथ
11,808 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य और भव्यता से परिपूर्ण है। यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को कई बुग्यालों (ऊँचे पर्वतीय घास के मैदानों) को पार करते हुए लगभग 19 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है।
रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के एकानन (मुख) की पूजा की जाती है, जबकि उनके संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में होती है। पंचकेदारों में केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर शामिल हैं। इनमें से रुद्रनाथ को चतुर्थ केदार कहा जाता है।
श्रद्धालुओं में भावनात्मक क्षण
कपाट बंद होने के अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और देशभर से आए श्रद्धालु उपस्थित रहे। मंदिर परिसर में वातावरण भावनाओं से भरा हुआ था—कई भक्तों ने अगले वर्ष पुनः यात्रा शुरू होने की कामना की। बर्फीले पहाड़ों की गोद में स्थित यह पवित्र स्थल सर्दियों में सफेद चादर में ढक जाता है, इसलिए भगवान की पूजा अब गोपेश्वर में ही संपन्न की जाएगी।