देहरादून में मातृ-शिशु मृत्यु दर पर बड़ा खुलासा, 3 महीने में 81 जिंदगियां हुईं खत्म

सीडीओ की बैठक में चौंकाने वाला आंकड़ा, स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे सवाल

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर चिंता पैदा करने वाला आंकड़ा सामने आया है। बीते तीन महीनों (अप्रैल से जुलाई 2025) के भीतर जिले में 18 गर्भवती महिलाओं और 63 नवजात शिशुओं की मौत दर्ज की गई है। यह खुलासा गुरुवार को आयोजित मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) की त्रैमासिक समीक्षा बैठक में हुआ।

बैठक में हुआ बड़ा खुलासा

बैठक में सीडीओ ने संबंधित सरकारी व निजी अस्पतालों, ब्लॉक चिकित्सा अधिकारियों, एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं से विस्तृत जानकारी ली। प्रभावित परिवारों से मृत्यु के कारणों का विश्लेषण करने के बाद अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए कि गर्भवती महिला और नवजात शिशुओं की प्रसव पूर्व देखभाल (ANC), संस्थागत प्रसव और गृह आधारित नवजात देखभाल (HBNC) के दौरान किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

सीडीओ ने स्पष्ट किया कि मातृ-शिशु सेवाओं का लाभ हर हाल में समय पर और गुणवत्तापूर्ण तरीके से मिलना चाहिए। किसी भी लापरवाही पर संबंधित अधिकारी व कर्मचारी पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

सीएमओ का बयान और स्पष्टीकरण

देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि जिले में मातृ और शिशु मृत्यु के मामलों की नियमित समीक्षा की जा रही है। उन्होंने कहा कि:

  • मातृ मृत्यु के 18 मामलों में से केवल 6 महिलाएं देहरादून जिले की थीं, जबकि शेष 12 महिलाएं अन्य जिलों से इलाज कराने देहरादून आई थीं।

  • देहरादून जिले की मातृ मृत्यु दर (MMR) 42 है, जबकि पूरे उत्तराखंड की औसत 103 और राष्ट्रीय स्तर पर 97 है।

  • जिले में अप्रैल से जुलाई 2025 तक 63 शिशु (0 से 5 वर्ष आयु वर्ग) की मौत हुई है। इसके पीछे मुख्य कारण समय से पूर्व जन्म और कम वजन बताया गया है।

  • वर्तमान में जिले की शिशु मृत्यु दर (IMR) 10.4 है, जो कि उत्तराखंड (17) और राष्ट्रीय स्तर (20) से बेहतर मानी जा रही है।

पिछले वर्ष की तुलना में कमी

सीएमओ ने यह भी बताया कि वर्ष 2024-25 में जुलाई माह तक 22 मातृ मृत्यु रिपोर्ट हुई थी, जबकि इस साल यह संख्या 18 रही है। वहीं, शिशु मृत्यु के मामलों में भी पिछले वर्ष जुलाई तक 100 मौतें दर्ज की गई थीं, जबकि इस वर्ष यह संख्या घटकर 63 रह गई है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल

हालांकि आंकड़े पिछले वर्ष की तुलना में कमी का संकेत देते हैं, लेकिन तीन महीने में 81 जिंदगियां खोने का यह आंकड़ा स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भवती महिलाओं की समय पर जांच, पोषण की उपलब्धता, अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं और नवजात शिशुओं की गहन निगरानी से इन मौतों को काफी हद तक रोका जा सकता है।

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