देवभूमि की बेटियां असुरक्षित: महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल

देहरादून। देवभूमि कहलाने वाले उत्तराखंड के लिए यह चिंता का विषय है कि हाल ही में आई राष्ट्रीय महिला सुरक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट में राजधानी देहरादून उन शीर्ष 10 शहरों में शामिल है, जहां महिलाएं खुद को सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं। यह स्थिति प्रदेश की कानून व्यवस्था और शासन–प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश बने असुरक्षा के केंद्र

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के साथ-साथ हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर डराने वाली घटनाएं सामने आती रही हैं। आईएसबीटी परिसर में किशोरी से सामूहिक दुष्कर्म हो या फिर अंकिता भंडारी हत्याकांड, इन घटनाओं ने प्रदेशवासियों को हिलाकर रख दिया। अंकिता केस में आरोपी रिसॉर्ट मालिक द्वारा उसे देह व्यापार में धकेलने की कोशिश और फिर हत्या ने पूरे राज्य में ऐसा आक्रोश पैदा किया कि आंदोलन आज भी थमा नहीं है।

विधानसभा में गूंजा महिला सुरक्षा का मुद्दा

हाल ही में गैरसैंण विधानसभा सत्र में विपक्ष ने कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर हंगामा किया। विपक्षी दलों ने सरकार से पूछा कि क्यों हर बार यौन शोषण से लेकर भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम सामने आते हैं। दर्जनों मामलों का हवाला देकर विपक्ष ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार पूरी तरह विफल रही है।

सामाजिक तानेबाने में भी दरारें

मामला केवल सड़क या कार्यस्थल तक सीमित नहीं है। महिलाएं अपने ही घरों में असुरक्षित महसूस कर रही हैं। इसका उदाहरण हरिद्वार की भाजपा नेत्री का मामला है, जिस पर अपनी नाबालिग बेटी का यौन शोषण अपने पुरुष मित्रों से कराने का आरोप है। जब एक बेटी अपनी ही मां पर भरोसा न कर सके तो समाज में महिलाओं की सुरक्षा का दावा खोखला प्रतीत होता है।

लूट-झपट से लेकर यौन शोषण तक

देहरादून और हरिद्वार की सड़कों पर आए दिन महिलाओं से मोबाइल और चेन स्नैचिंग की घटनाएं आम हो चुकी हैं। जबकि यौन शोषण और उत्पीड़न के मामले और भी गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। पुलिस–प्रशासन भले ही अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने की बात करता हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ बनाम हकीकत

सरकार का नारा है “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, लेकिन जब सत्ता में बैठे लोग ही महिलाओं की असुरक्षा का कारण बनने लगें तो यह नारा सिर्फ दिखावा बनकर रह जाता है।

यूसीसी और लिव-इन पर उठे सवाल

उत्तराखंड सरकार ने देश में पहली बार समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का श्रेय तो लिया है, लेकिन इसके तहत लिव-इन संबंधों को मान्यता देने पर देवभूमि की संस्कृति और सभ्यता से खिलवाड़ करने के आरोप लग रहे हैं। लोगों का मानना है कि सरकार एक तरफ महिला सुरक्षा की बात करती है और दूसरी तरफ ऐसे कानून लाती है जो समाज में असुरक्षा और अविश्वास की भावना बढ़ाते हैं।

जरूरत गंभीरता की

भले ही इस सर्वेक्षण से प्रदेश के नेता और अधिकारी सहमत न हों, लेकिन सच्चाई यही है कि महिला सुरक्षा को लेकर स्थिति बेहद चिंताजनक है। देवभूमि की संस्कृति और समाज को बचाए रखने के लिए सरकार और प्रशासन को न केवल कानून बनाना होगा बल्कि जमीनी स्तर पर कड़े और ठोस कदम उठाने होंगे।

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