पंचायत चुनाव पर सवाल, मतदाता सूची में गड़बड़ी ने बढ़ाया विवाद

देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की मतदान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और कल नतीजे घोषित किए जाएंगे, लेकिन इस बार के चुनावों में जिस तरह की अनियमितताएं और गड़बड़ियां सामने आई हैं, उन्होंने पूरे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

चुनाव के दौरान हाईकोर्ट में कई शिकायतें पहुंचीं, जिन पर अदालत ने चुनाव आयोग को यह स्पष्ट निर्देश दिया था कि पंचायत चुनाव पंचायती राज एक्ट के प्रावधानों के अनुरूप कराए जाएं। हालांकि जमीन पर हालात बिल्कुल अलग दिखे। चुनाव के कई चरणों में यह पाया गया कि एक्ट की धाराओं का खुलेआम उल्लंघन हुआ।

दोहरी मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशी

पंचायती राज एक्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति का नाम एक साथ ग्रामीण और शहरी दोनों मतदाता सूचियों में दर्ज नहीं हो सकता। न ही ऐसे व्यक्ति को वोट डालने या प्रत्याशी बनने की अनुमति है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में प्रत्याशियों ने इन प्रावधानों की अनदेखी की।

सैकड़ों प्रत्याशी ऐसे पाए गए जिनके नाम दो-दो मतदाता सूचियों में दर्ज थे, जबकि दर्जनों प्रत्याशी निर्विरोध ही चुने जा चुके हैं। यह न केवल कोर्ट के आदेशों की अवमानना है, बल्कि कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग और संबंधित रिटर्निंग अधिकारियों के खिलाफ अदालत क्या कार्रवाई करती है।

प्रवासी वोटरों ने बदले समीकरण

चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशियों ने हर तरह के हथकंडे अपनाए। मतदाताओं को शराब और भोज कराने से लेकर महंगे उपहार देने तक के मामले सामने आए। सबसे बड़ी चिंता प्रवासी वोटरों को लेकर है। दिल्ली, चंडीगढ़ और मुंबई जैसे शहरों से प्रवासियों को वोट डालने के लिए गांवों में बुलाया गया।

इन प्रवासियों के नाम भी अक्सर शहर और गांव दोनों जगह की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं। उनके मतदान ने पहाड़ के गांवों में चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल दिए। स्थानीय लोग जो अपने बीच से ईमानदार और काम करने वाले प्रत्याशी चुनना चाहते थे, उनके सारे प्रयास धरे के धरे रह गए। इससे पहाड़ के ग्रामीणों में गुस्सा है और वे चुनाव नतीजों के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं।

सोशल मीडिया पर उछलीं गड़बड़ियां

सोशल मीडिया पर चुनावों के दौरान किए गए अनैतिक प्रयासों के कई वीडियो और पोस्ट वायरल हुए हैं। प्रवासियों के लिए कारों की व्यवस्था करने से लेकर उन्हें उपहार देने तक के आरोप प्रत्याशियों पर लग रहे हैं। यह घटनाएं दर्शाती हैं कि चुनावी प्रक्रिया कितनी प्रभावित हुई है।

लोकतंत्र पर सवाल

चुनाव आयोग की व्यवस्थाओं में आई इन खामियों ने इस बार के पंचायत चुनाव को सवालों के घेरे में ला दिया है। जिस लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं, वही अब कटघरे में खड़ा दिख रहा है। चुनाव परिणामों के बाद हालात और बिगड़ सकते हैं क्योंकि कई ग्रामीण संगठन और प्रत्याशी कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं।

यह स्पष्ट हो गया है कि अगर चुनाव आयोग ने समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए, तो उत्तराखंड के पंचायत चुनाव न केवल कानूनी संकट में घिर सकते हैं बल्कि आने वाले वर्षों में लोकतांत्रिक विश्वास भी डगमगा सकता है।

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