पोक्सो आरोपी से जेल में बर्बरता पर हाईकोर्ट सख्त: डिप्टी जेलर और कांस्टेबल तत्काल निलंबित

मानवाधिकार उल्लंघन पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कारागार विभाग को दी सख्त चेतावनी

नैनीताल, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सितारगंज जेल में पोक्सो एक्ट के तहत बंद आरोपी सुभान के साथ किए गए अमानवीय व्यवहार को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए बड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। न्यायालय के आदेश के बाद डिप्टी जेलर नवीन चौहान और कांस्टेबल राम सिंह कपकोटी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।

क्या है मामला:

हाईकोर्ट की यह कार्रवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ द्वारा 15 जुलाई को पारित आदेश के तहत हुई है।
मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोर्ट ने इसे मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन माना है।

इस प्रकरण में उधम सिंह नगर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव द्वारा कोर्ट को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसमें कहा गया कि सितारगंज जेल में बंद पोक्सो आरोपी सुभान के साथ जेल में बुरी तरह मारपीट की गई थी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।

कोर्ट की सख्त टिप्पणियां और निर्देश:

कोर्ट ने न सिर्फ मारपीट की घटना पर नाराज़गी जताई, बल्कि इसे कैदियों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि—

“जेल में बंद आरोपी कानून की सुरक्षा में होता है, न कि शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के लिए।”

न्यायालय ने जेल अधीक्षक को यह भी निर्देशित किया है कि वह उन सभी अधिकारियों और कर्मियों के नाम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें जो DLSA सचिव की मुलाकात के दौरान कैदी के पास उपस्थित थे।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कारागार) को निर्देश:

कोर्ट ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कारागार) को आदेश दिया है कि

  • न्यायालय के आदेशों का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करें।

  • घटना से संबंधित तथ्यात्मक रिपोर्ट, तस्वीरें और साक्ष्य को न्यायिक रजिस्ट्रार के पास सुरक्षित रखा जाए

क्या कहती है मानवाधिकार की परिभाषा:

संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति— चाहे वह आरोपी हो या दोषी— जेल में सम्मान और सुरक्षा का हकदार होता है। इस घटना ने न केवल इन सिद्धांतों को ठेस पहुंचाई है, बल्कि जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं।

आगे की कार्रवाई और संदेश:

यह मामला दर्शाता है कि न्यायपालिका कैदियों के अधिकारों की रक्षा के प्रति सजग और संवेदनशील है।
उम्मीद की जा रही है कि इस सख्ती के बाद जेलों में बंद आरोपियों और कैदियों के साथ मानवोचित व्यवहार सुनिश्चित करने की दिशा में व्यवस्था और जवाबदेही को और मजबूती मिलेगी।

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