उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: हाईकोर्ट के आदेश से पसरा असमंजस, सोमवार को आयोग की याचिका पर होगा फैसला

नैनीताल/देहरादून: उत्तराखंड के 12 जिलों में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर इस समय राज्य निर्वाचन आयोग और उम्मीदवारों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कारण है उत्तराखंड हाईकोर्ट का वह आदेश, जिसमें ग्रामीण और शहरी दोनों मतदाता सूचियों में नाम दर्ज होने वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने और मतदान करने पर रोक लगा दी गई है। इस आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक को हटाने की मांग की है। इस याचिका पर अब सोमवार को सुनवाई हो सकती है, जिससे इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है।


क्या है पूरा मामला?

राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की प्रक्रिया के लिए व्यापक तैयारियां की हैं और अब तक लाखों रुपये खर्च कर चुका है। लेकिन हाईकोर्ट के हालिया आदेश के चलते पूरी प्रक्रिया रुक गई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि एक मतदाता केवल एक ही प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में और एक ही मतदाता सूची में पंजीकृत हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति शहरी निकाय और ग्रामीण पंचायत, दोनों मतदाता सूचियों में शामिल है, तो वह न तो मतदान कर सकता है और न ही चुनाव लड़ सकता है।


आयोग की दलील: हो चुका है भारी संसाधन व्यय

राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से रविवार को दाखिल याचिका में कहा गया है कि चुनाव की तैयारियों में पहले ही भारी मात्रा में सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल हो चुका है। नामांकन, छपाई, प्रशिक्षण, वाहनों की व्यवस्था, बूथ निर्धारण, कर्मचारी तैनाती जैसी व्यवस्थाएं अंतिम चरण में हैं। ऐसे में यदि रोक नहीं हटाई गई तो पूरी चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।


सोमवार से चुनाव चिह्न आवंटन की प्रक्रिया पर भी संकट

चुनाव चिह्न आवंटन की प्रक्रिया सोमवार से शुरू होनी है, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद यह भी अधर में लटक गई है। यदि कोर्ट ने रोक को कायम रखा तो कई प्रत्याशियों के नामांकन निरस्त हो सकते हैं, जिससे चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह बाधित हो जाएगी। वहीं, मतदाताओं में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है कि उनका मतदान वैध होगा या नहीं।


हाईकोर्ट का आदेश: एक से अधिक मतदाता सूची में नाम गलत

हाईकोर्ट का आदेश संविधान और पंचायती राज अधिनियम की व्याख्या के तहत आया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता है, तो यह न केवल चुनावी नैतिकता बल्कि वैधानिक प्रक्रिया के भी खिलाफ है।


प्रत्याशियों और ग्रामीण जनता में बेचैनी

इस आदेश के बाद से प्रत्याशी वर्ग और ग्रामीण मतदाताओं में भारी चिंता व्याप्त है। अनेक उम्मीदवारों ने दोहरी सूची में नाम होने के कारण पर्चा दाखिल किया है। यदि सोमवार को कोर्ट से स्पष्ट आदेश नहीं आता, तो नामांकन पत्रों की वैधता और चुनावी कार्यक्रम पर भी असर पड़ सकता है।


क्या हो सकता है आगे?

  • यदि कोर्ट सोमवार को रोक हटाने का आदेश देता है, तो चुनाव प्रक्रिया सुचारू रूप से आगे बढ़ सकती है।

  • यदि रोक बरकरार रहती है, तो आयोग को दोहरी सूची वाले प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित करना पड़ सकता है और चुनाव कार्यक्रम में भी बदलाव संभव है।

  • राज्य सरकार और आयोग को मिलकर कानून में संशोधन या स्पष्ट मार्गदर्शन लाने की जरूरत पड़ सकती है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की जटिलताओं से बचा जा सके।

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