पिथौरागढ़ (मुनस्यारी): 10 किमी डोली में लादकर मरीज को पहुंचाया अस्पताल, बदहाल सिस्टम पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा”

पिथौरागढ़ (मुनस्यारी): 10 किमी डोली में लादकर मरीज को पहुंचाया अस्पताल, बदहाल सिस्टम पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा”

पिथौरागढ़ (मुनस्यारी):
उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क्षेत्र में एक बार फिर से सिस्टम की खामियों ने पहाड़ जैसे हालात उजागर कर दिए हैं। मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां के ग्रामीणों की ज़िंदगी आए दिन चुनौतियों से भरी रहती है। ताजा मामला मुनस्यारी के गोरीपार क्षेत्र का है, जहां ग्रामीणों ने एक बीमार बुजुर्ग को 10 किलोमीटर लंबा कठिन और खतरनाक रास्ता पार कर डोली के सहारे सड़क तक पहुंचाया।

घटना का विवरण:
शेर सिंह कुंवर नामक बुजुर्ग व्यक्ति बीते दिनों भेड़-बकरियां चराने पंचाचूली बेस कैंप के आस-पास के बुग्यालों में गए हुए थे। वहीं अचानक उनके पेट में तेज़ दर्द शुरू हुआ। उनके साथ मौजूद एक अन्य पशुपालक ने गांव में सूचना भेजी। सूचना मिलते ही ग्रामीण बिना किसी देर के लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलकर उस स्थान पर पहुंचे।

चूंकि वहां तक कोई वाहन नहीं पहुंच सकता और न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है, ग्रामीणों ने आसपास की लकड़ियां इकट्ठा कर एक अस्थायी स्ट्रेचर (डोली) बनाई। इसी डोली में मरीज को खतरनाक और पथरीले रास्तों से होते हुए सड़क मार्ग तक लाया गया। वहां से फिर मरीज को मुनस्यारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है।

सिस्टम की नाकामी:
सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र सिंह पाना ने बताया कि पंचाचूली बेस कैंप तक पैदल मार्ग निर्माण के लिए धनराशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं हुआ। इस क्षेत्र में पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं, इसके बावजूद आज तक कोई सुरक्षित और सुगम रास्ता नहीं बन सका।

उन्होंने कहा कि कई बार सरकार और प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण के वादे किए गए, लेकिन वे सब हवा में ही रह गए। ग्रामीणों को हर बार जोखिम भरे रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है, चाहे वह आपातकालीन स्थिति ही क्यों न हो।

ग्रामीणों की मांग:
ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि जल्द से जल्द इस क्षेत्र में स्थायी पैदल मार्ग और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की जाए, ताकि भविष्य में किसी भी मरीज को डोली में लादकर जान जोखिम में डालने की नौबत न आए।

एक बार फिर इस बात की गवाही देती है कि आज भी उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी गांवों में लोगों को जीने के लिए बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यह न केवल एक प्रशासनिक विफलता है, बल्कि इंसानियत के प्रति उदासीन रवैये का प्रतीक भी है।

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