बात होती है दिल्ली की

यह बात शायद ही कभी चर्चा में आती है कि देश के अनेक दूसरे इलाकों के लोग दिल्ली से भी अधिक प्रदूषण झेलने को मजबूर हैँ। लेकिन वहां के बाशिंदों की सेहत की चिंता शायद किसी को नहीं होती।

दिल्ली में हर साल दिवाली के आसपास प्रदूषण का धुआं आसमान में छा जाता है। तब मीडिया के लेकर सियासी हलकों तक में इसकी जोरदार चर्चा होती है। राजनीतिक दलों के बीच तू तू-मैं मैं होती है और तरह-तरह की चिंताएं जताई जाती हैं। लेकिन यह बात शायद ही कभी चर्चा में आती है कि देश के अनेक दूसरे इलाके दिल्ली से भी अधिक प्रदूषण झेलने को मजबूर बने हुए हैँ। वहां के बाशिंदों की सेहत की चिंता शायद किसी को नहीं होती। जबकि इस खबर पर गौर करें। 20 नवंबर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 423 के साथ बिहार का मोतिहारी भारत का सर्वाधिक प्रदूषित शहर रहा। दूसरे नंबर पर 411 एक्यूआई के साथ दरभंगा तथा तीसरे नंबर पर 401 के साथ सीवान रहा। बेगूसराय, कटिहार, बेतिया, पूर्णिया, अररिया, मुजफ्फरपुर, बक्सर, समस्तीपुर और पटना की हवा भी काफी खराब चल रही  है। मगर क्या बिहार में प्रदूषण और वायु की खराब गुणवत्ता पर पूरे देश में वैसी चर्चा हुई, जैसी अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के बारे में हो रही थी।

शिकागो विश्वविद्यालय की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए एक अध्ययन के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश समेत सात राज्यों की लगभग पूरी आबादी पीएम 2.5 की जद में हैं। अधिकारियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के खेतों में जलाई जा रही पराली का धुआं भी बिहार में हवा को खराब कर रहा है। पश्चिम से आने वाली हवा की वजह से यूपी का धुआं बिहार की ओर आ रहा है। उससे राज्य के सीमावर्ती जिले इससे खासे प्रभावित हो रहे हैं। बाकी कारण तो वही हैं, जो हर जगह देखने को मिलते हैं। मसलन ‘पेड़ों की कटाई, शहर के अंदर कचरे को जलाना, सडक़-पुल या भवन निर्माण आदि में निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं करना, निर्माण सामग्रियों का बिना ढंके परिवहन आदि। इन सब वजहों से वायु गुणवत्ता सूचकांक में खतरनाक स्तर तक वृद्धि होती है। लेकिन इसका समाधान कैसे किया जाए, इस प्रश्न बिहार जैसे राज्यों में चर्चा भी नहीं होती है। इस तरह लोग जोखिम भरे वातावरण के बीच जीने को अभिशप्त बने हुए हैँ।

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