फ्रांस में सस्ती फीस, अंग्रेजी में पढ़ाई का छात्रों को मौका
श्रुति व्यास
फ्रांस की सरकार ने गजब फैसला किया है। पिछले महीने फ्रांस की यूरोप और विदेशी मामलों की मंत्री सुश्री केथरीन कोलोना ने एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है। फ्रांस ने तय किया है कि सन् 2025 तक कम से कम 20,000 भारतीय छात्र वहां पढ़ रहे होंगे। फ्रांस में पढ़ाई का खर्च यूरोप के अन्य देशों से काफी कम है। स्नातक पाठ्यक्रमों का औसत शुल्क रू. 13,500 (170 यूरो) प्रतिवर्ष है। इंजीनियरिंग के छात्रों को लगभग रू. 50,000 (620 यूरो) और मेडिकल कालेजों में पढऩे वालों को रू. 36,000 (450 यूरो) चुकाने पड़ते हैं। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की औसत फीस लगभग रू. 21,000 (260 यूरो) है। ज्यह भारतीय छात्रों के लिए एक वरदान और सुनहरा मौका है।
पेरिस पर्यटकों के लिए लाजवाब शहर है। सीन नदी के किनारे चहलकदमी करते हुए, पेरिस की प्रसिद्ध मीठी ब्रेड क्वैसॉन् का मज़ा लेना या इस ऐतिहासिक शहर के वर्तमान और अतीत के रहस्यों और रूमानियत से रूबरू होना, सबका मजा है। शुक्रवार की किसी खुशनुमा दोपहर, गुजरे ज़माने की याद दिलाते किसी कैफे में सिमान द बोऊआर या सार्त्र की तरह कॉफी और मेकक्रून का आनंद लेना या 39, रोय डिकेस्टीटो के उस कमरे से गुजऱना, जहां कभी अर्नेस्ट हेमिंग्वे अपनी लघु कहानियां लिखा करते थे, उस सबकों, सोचते हुए घूमना बेमिसाल है। या फिर किसी अलसाये से रविवार को किताबों और उनकी नामवर दुकान शेक्सपियर एंड कंपनी के इतिहास में गोते लगाना, एकदम ‘एमिली इन पेरिस’ की तरह! बतौर पर्यटक पेरिस जाने वाले लोग यही कुछ करते हुए इंस्टाग्राम पर अपने फोटो अपलोड करते हैं।
और कल्पना करें कि आपको या किसी को कई महीनों या सालों तक अपने दिन और रात पेरिस में बिताने का मौका मिले, विशेषकर एक विद्यार्थी के रूप में तो कहना ही क्या! आखिर इस उम्र में समय और जवानी दोनों आपके साथी होते हैं – एक ऐसा छात्र जीवन जिसमें लालित्य भी हो, प्रतिष्ठा भी और जो बहुत महंगा भी न हो।
हकीकत है कि इंग्लैंड, अमरीका ब्राजील और कई अन्य देशों के छात्र काफी लंबे समय से पेरिस के विश्वविद्यालयों में पढ़ते आए हैं। लेकिन भारतीय छात्रों के लिए भाषागत समस्यायों के कारण यह कभी व्यावहारिक विकल्प नहीं रहा।
परंतु अब हालात बदल गए हैं। फ्रांस चाहता है कि उसके विश्वविद्यालयों में भारत के स्टूडेंट की जिंदादिली, संस्कृति और मेधा की गूँज हो। यही कारण है कि पिछले महीने फ्रांस की यूरोप और विदेशी मामलों की मंत्री सुश्री केथरीन कोलोना ने एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की। इसमें फ्रांस ने तय किया है कि सन् 2025 तक कम से कम 20,000 भारतीय छात्र वहां पढ़ रहे होंगे।
यह भारतीय छात्रों के लिए एक वरदान और सुनहरा मौका है।
सोलह वर्ष पहले विदेश में पढऩे के नाम पर मेरे सामने केवल इंग्लैड और अमेरिका का विकल्प था। उस समय यही वे दो देश थे जहां पढऩा अच्छा समझा जाता था। और इसका एक बड़ा कारण था इन देशों में अंग्रेजी का पढ़ाई-लिखाई और बोलचाल की भाषा होना। उस समय भारत से छात्र कम से कम स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए विदेश कम ही जाया करते थे। फिर भी मैंने और मेरे पिता ने प्रचलित मानदंडों और परंपराओं को दरकिनार कर मेरी आगे की पढ़ाई के लिए यूके के स्काटलैंड के सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय को चुना। उस समय विदेश पढऩे जाना इतना आसान नहीं हुआ करता था। आम विद्यार्थियों को यह पता ही नहीं था कि आवेदन कैसे किया जाए और अपने लिए उपयुक्त विश्वविद्यालय कैसे चुना जाए; व्यक्तिगत कथन में क्या लिखा जाए और अपने उद्देश्यों का वर्णन कैसा हो। आईईएलटीएस की तैयारी, धन की व्यवस्था आदि के संबंध में जानकारी भी सहज सुलभ नहीं थी। पूरी प्रक्रिया कष्टदायी तो थी लेकिन मजेदार और परिपूर्णता का अहसास कराने वाली भी थी क्योंकि यह संभावनाओं और अनुभवों से भरे एक चमकीले भविष्य की राह खोलती थी।
अब हालात काफी बदल गए हैं। जो यूथ विदेश में पढऩे के इच्छुक होते हैं उन्हें यह भी पता है कि इसके लिए उन्हें क्या करना होगा। बढ़ती प्रतियोगिता, विदेश में शिक्षा हासिल करने की चाहत और साधनों की उपलब्धता के चलते बड़ी संख्या में विद्यार्थी इंग्लैंड और अमरीका जा रहे हैं। यह उन खबरों से भी जाहिर है जिनके मुताबिक इस साल इंग्लैंड, अमरीका, आस्ट्रेलिया और कनाडा के लिए छात्र वीजा मिलने में काफी वक्त लग रहा है।
लेकिन अब फ्रांस द्वारा भारतीय छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोल देने से उन्हें पहले से अधिक विकल्प और अवसर उपलब्ध हैं। विशेषकर इसलिए क्योंकि वहां ज्यादातर कोर्स अंग्रेजी में पढ़ाए जाएंगे और इससे भाषा की बाधा ही समाप्त हो जाएगी। जाहिर है कि डिग्री पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए टोफेल या आईईएलटीएस जैसी अंग्रेजी में प्रवीणता जांचने वाली परीक्षाओं में सफल होना अनिवार्य हो सकता है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अभी लगभग 6,000 भारतीय छात्र फ्रांस के उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे हैं।
लेकिन फ्रांस क्यों, जबकि यह देश वहां की भाषा के कारण भारतीयों को कुछ अजनबी सा, कुछ अलग सा लगता है? लेकिन आखिर फ्रांस क्यों नहीं? क्या 21वीं सदी नई संस्कृतियों से जुडऩे और विश्व को एक गाँव बनाने का युग नहीं है?
फ्रांस अपने समुद्ध इतिहास, परंपराओं, आंदोलनों, साहित्य और कला के साथ-साथ नोत्र डेम, लूव्र संग्रहालय, मेक्रून और जीवंतता के लिए जाना जाता है। यहां रहना और पढऩा अपने आप में शान की बात और एक बड़ा अवसर है। परंतु इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि फ्रांस में पढ़ाई का खर्च यूरोप के अन्य देशों से काफी कम है। फ्रांस में उच्च शिक्षा हासिल करना एक अधिकार है जो अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और पुरी गंभीरता से लागू किया जाता है। यह फ्रांस के विश्वविद्यालयों की ट्यूशन फीस से जाहिर है। स्नातक पाठ्यक्रमों का औसत शुल्क रू. 13,500 (170 यूरो) प्रतिवर्ष है। इंजीनियरिंग के छात्रों को लगभग रू. 50,000 (620 यूरो) और मेडिकल कालेजों में पढऩे वालों को रू. 36,000 (450 यूरो) चुकाने पड़ते हैं। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की औसत फीस लगभग रू. 21,000 (260 यूरो) है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि इंग्लैंड के किसी भी विश्वविद्यालय में छात्र को इससे लगभग तीन गुनी राशि फीस के रूप में चुकानी होती है। इसके अलावा वहां रहने का खर्च भी कहीं ज्यादा है। मजा-मौज और यात्राओं पर भी कहीं ज्यादा व्यय होता है। अमरीका में तो पढ़ाई और भी महंगी है। वहां दूसरे देशों के छात्रों के लिए शुल्क करीब 50,000 अमरीकी डालर (करीब 40 लाख रूपये) है। फ्रांस में प्रतिष्ठित ग्रांड ईकाल सहित निजी विश्वविद्यालयों में भी व्यवसाय प्रबंधन पाठ्यक्रमों का शुल्क अमरीका की तुलना में बहुत कम है। अमेरिका ही क्यों, कई भारतीय निजी कालेजों की तुलना में भी फ्रांस में पढऩा सस्ता है।
फ्रांस के विश्वविद्यालयों में अनेक विषयों के कोर्स उपलब्ध हैं। देश के 32 विश्वविद्यालयों और 15 बिजनेस स्कूलों में 1,700 के करीब पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। और इनका शैक्षणिक स्तर दुनिया में किसी से कम नहीं है। यहां के विश्वविद्यालयों के पूर्व विद्यार्थी अब तक 72 नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। फ्रांस के शैक्षिक जगत की बहुवादी संस्कृति किसी के लिए भी गर्व की बात हो सकती है। वहां से पीएचडी कर रहे विद्यार्थियों में से 42 प्रतिशत विदेशी हैं।
पेरिस, विद्यार्थियों के रहने के लिए दुनिया के सबसे बेहतरीन शहरों में से एक माना जाता है और अगर वहां पढऩे के बाद भी किसी भारतीय छात्र को वहां की संस्कृति रास न आए तो वह भारत लौट सकता है और उसे यहां नौकरी मिलने की गारंटी होगी। भारतीय विद्यार्थियों को फ्रांस में पढऩे के लिए प्रोत्साहित करने हेतु वहां की सरकार ने उन्हें यह आश्वासन देने का निर्णय लिया है कि जब वे भारत लौटेंगे तो उन्हें भारत में कार्यरत ऐसी लगभग 1000 कंपनियों में से किसी एक में नौकरी दी जाएगी जो या तो फ्रेंच हैं या जिनका फ्रांस की किसी कंपनी के साथ जुड़ाव है। और यह सूची खासी लंबी है। इसमें शामिल हैं एयरबस, रेनाल्ट, डिकेथलॉन और लॉरियल। ये कंपनियां फ्रांस में पढ़े विद्यार्थियों को रोजगार देने की इसलिए भी इच्छुक होंगी क्योंकि वे सांस्कृतिक दृष्टि से उनके अनुकूल होंगे।
फ्रांस में शिक्षा हासिल करने को जितना आकर्षक बना दिया गया है उसके चलते कोई आश्चर्य नहीं कि वह अत्यंत महंगी पढ़ाई वाले इंग्लैंड की तुलना में भारतीय विद्यार्थियों को ज्यादा पसंद आने लगे। इस मामले में फ्रांस, अमरीका से भी आगे निकल सकता है जहां पढ़ाई के बाद उपलब्ध अवसर कम होते जा रहे हैं, जहां का वीजा प्राप्त करने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं और जहां नस्लीय नफरत तेजी से बढ़ रही है। कुल मिलाकर फ्रांस भारतीय छात्रों को पुकार रहा है और वे चाहे अपने दिल से सोचें या दिमाग से, यह उनके लिए एक ऐसा मौका है जिसे उन्हें गंवाना नहीं चाहिए।