उत्तराखंड: दुनिया से विदा हो गई हंसी प्रहरी,फर्राटेदारअंग्रेजी बोलते हुए भीख मांगने वाले

उत्तराखंड: दुनिया से विदा हो गई हंसी प्रहरी, परिवार ने झाड़ा पल्ला, समाजसेवी भोला शर्मा ने कराया अंतिम संस्कार

धर्मनगरी की सड़कों पर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए भीख मांगने वाले हंसी प्रहरी को आप भी जानते होंगे। जो अब इस दुनिया में नहीं रही। जी हां हंसी की अस्पताल में मौत हो गई। दुर्भाग्य की बात यह है कि इन हालातों की शिकार हंसी से उसके जीवन काल में ही हाथ छुड़ाने वाले परिवार वाले हंसी की मौत होने के बाद उसके अंतिम संस्कार तक के लिए हरिद्वार नहीं आ सके। हंसी प्रहरी अपने पीछे अपने बेटे को छोड़ गयी है। बेटे के सिर से पहले पिता का साया छुट गया और अब मां भी छोड़कर चली गई।

परिवार ने अंतिम संस्कार से किया मना, भोला शर्मा आए आगे

चार पांच दिन पहले तबियत बिगड़ने पर समाजसेवी व भाजपा नेता भोला शर्मा ने हंसी को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। इलाज के दौरान मौत होने पर भोला शर्मा ने हंसी के परिवार से संपर्क साधा। भोला ने बताया कि हंसी के परिवार के सदस्यों ने अंतिम संस्कार के लिए हरिद्वार आने से साफ मना कर दिया। जिसके बाद भोला को ही हंसी के अंतिम संस्कार के लिए आगे आना पड़ा। भोला ने शव को कनखल शमशान घाट ले जाकर विधि विधान से हंसी के बेटे के हाथ से उसका अंतिम संस्कार कराते हुए मिसाल कायम की है। हंसी के बेटे की देखरेख भी फिलहाल भोला कर रहे हैं। भोला शर्मा के इस नेक कार्य की चारों तरफ सराहना हो रही है।

कुमाऊं विश्वविद्यालय की शान थी हंसी प्रहरी

अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम रणखिला गांव की रहने वाली इस महिला का नाम है हंसी प्रहरी। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हंसी की इंटर तक की शिक्षा गांव में ही हुई और फिर उसने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में प्रवेश ले लिया। पढ़ाई के साथ-साथ वह विवि की तमाम शैक्षणिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। हंसी प्रहरी वही महिला है जो कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय की शान थी। छात्रा यूनियन वाइस प्रेसिडेंट रहीं हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी में पास करने के बाद विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की। उसने 2003 में परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर लखनऊ निवासी नन्हे लाल से विवाह किया था। ससुराल के कलह से परेशान होकर साल 2008 में हंसी हरिद्वार आ गई। साल 2012 के बाद से अपना और बेटे का पेट पालने के लिए वह भीख मांगकर गुजारा करने लगी। पढ़ाई-लिखाई में तेज हंसी हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा घाटों पर भीख मांगती थी।

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